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इधर ऑपरेशन कालनेमी, उधर रातों रात मजार!

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रिपोर्ट/दिनेश शास्त्री

ढोंगी साधुओं के विरुद्ध उत्तराखंड सरकार ने ऑपरेशन कालनेमी शुरू किया तो कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं। सलीम, शाहबाज और शाह आलम जैसे लोग पकड़े जाते हैं तो लगता है सनातन की लहर में हर कोई बहने को आतुर है किंतु इसी दौरान यूपी में जब कोई छांगुर पकड़ा जाता है और उसके कारनामे सामने आते हैं तो पैरों तले से जमीन खिसकने लगती है।

इस बीच एक खबर और चौंका देती है जब हरिद्वार में टिहरी बांध विस्थापितों के लिए निर्धारित दस बीघा जमीन पर अचानक एक मजार और दरगाह उभर आती है तो सरकार के किए कराए पर पानी फिरता नजर आता है। खबर है कि हरिद्वार में यह अवैध निर्माण सुमन नगर इलाके में किया गया है। टिहरी बांध परियोजना से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए तय की गई सरकारी जमीन पर अचानक एक पक्की दरगाह और मजार का निर्माण कर दिया गया।

यह अवैध कब्जा रातों-रात तो नहीं हुआ होगा। इसमें समय जरूर लगा होगा तो सरकारी सिस्टम कहां सोया था। प्रशासन को इसकी भनक कैसे नहीं लगी, यह बड़ा सवाल है। वैसे यह भी तय है कि बिना मिलीभगत के सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण संभव नहीं है। तो क्या सिस्टम के कुछ लोग सरकारी की मंशा पर पानी फेरने पर आमादा हैं?

जाहिर है समाज के संजीदा लोग लैंड जिहाद की इस घटना से बेहद नाराज हैं और सरकार के रवैए से नाराज भी की वह आखिर सिस्टम में बैठी काली भेड़ों की अनदेखी क्यों कर रही है।

हिंदू संगठनों की कार्रवाई की मांग

वैसे प्रदेश की धामी सरकार बहुत पहले से कहती आ रही है कि उत्तराखंड में लैंड जिहाद किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अवैध मजारों और दरगाहों पर तत्काल सख्त कार्रवाई होगी। इसके बाद भी अगर कोई लगातार चुनौती देता आ रहा है तो समझा जा सकता है कि अपराधी बेखौफ हैं और मौका मिलते ही अपने मंसूबे पूरे करते आ रहे हैं। सरकारी जमीन पर असामाजिक तत्व कब्जा कर रहे हैं तो सिस्टम की पड़ताल भी जरूरी हो जाती है।

उत्तराखंड में इस लैंड जिहाद के मसले ने माहौल को फिर गर्मा दिया है। 

वैसे पिछले दो साल के अंदर प्रदेश में 538 मजारों, 237 मदरसों, 42 अन्य धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ अभियान चलाया जा चुका है। इस दौरान 6500 एकड़ जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त कराया गया है। इसके साथ ही यह सवाल भी स्वाभाविक रूप से उठता है कि कठोर कार्रवाई न होने के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है।

जनता तो पूछेगी ही कि आखिर काफिला लुटा क्यों? कैसे 6500 एकड़ जमीन माफिया ने हथिया ली। प्रशासन के उन लोगों के विरुद्ध क्यों कार्यवाही नहीं हुई, जिनके कार्यकाल में यह सब हुआ। यह क्यों न पूछा जाए कि उन्होंने क्या आंख बंद रखने की कीमत वसूली थी? और अगर कीमत वसूली तो ऊपर बैठे लोग क्यों मौन साधे रहे?

क्या आपको नहीं लगता कि हमारा पूरा सिस्टम ही बीमार हो गया है जो अवैध कार्य रोकने के लिए सरकार को अभियान चलाना पड़ता है।

प्रदेश में सरकारी जमीन पर बनी अवैध दरगाहों या मजारों को लेकर मुख्यमंत्री धामी ने अवैध निर्माण और कब्जे के खिलाफ सख्त निर्देश दे रखे हैं, इसके बावजूद हरिद्वार में 10 बीघा सरकारी जमीन पर दरगाह और मजार खड़ी होने से स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठने लाजिमी हैं। जाहिर है प्रशासन की नाक के नीचे सरकारी जमीन अवैध कब्जे की भेंट चढ़ गई।

आखिर जिम्मेदार लोग कर क्या रहे हैं और उनके विरुद्ध कार्यवाही करने में संकोच क्यों है और लाचारी क्या है? क्या शासन प्रशासन ऐसे लोगों को बचाने पर तुला क्यों है? क्यों नहीं लापरवाही के लिए जवाबदेही तय की जाती?

एक बात से तो कोई इनकार नहीं कर सकता कि इंटेलिजेंस इनपुट का तंत्र बहुत खराब है। ऑपरेशन कालनेमी न चला होता तो शायद बांग्लादेश का शाह आलम कांवड़िए के वेश में नहीं मिलता। वह जिस मंशा से कांवड़िया बन कर आया, वह हृदय परिवर्तन हो जाने का नतीजा तो कतई नहीं लगता।

जाहिर है उसकी मंशा कांवड़ियों के बीच घुस कर कुछ और करने की होगी लेकिन अगर वह बिना ऑपरेशन कालनेमी के पकड़ में आता तो माना जा सकता था कि अभिसूचना तंत्र की नजर से बचना संभव नहीं है। सच तो यह है कि अभिसूचना तंत्र पर पॉलिटिकल रिपोर्टिंग का इतना दबाव है कि उन्हें असामाजिक तत्वों की जानकारी जुटाने का समय शायद ही मिल पाता होगा। उनकी कार्यकुशलता और क्षमता पर कभी संदेह नहीं रहा है।

बहरहाल प्रदेश की डेमोग्राफी बदलने की कोशिशें लगातार जारी हैं। ये मजार और दरगाह जो रातों रात उभर रही हैं, पहाड़ की लड़कियां गायब हो रही हैं, नाम बदलकर काम करने का जो चलन बढ़ रहा है वह देवभूमि को स्वरूप को बदलने का बड़ा षड्यंत्र प्रतीत होता है।

आखिर में एक सवाल का जवाब तो पूछना ही होगा कि ये कौन लोग हैं जो सरकारी जमीन पर रातों रात अवैध निर्माण करते आ रहे हैं। अगर 538 अवैध मजार तोड़ी जरूर गई लेकिन उन्हें बनाने वालों की कमर पर कभी प्रहार नहीं हुआ। तभी तो लोग योगी जी को याद करते हैं।

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