भंयकर बरसात में भी सूख रहा जल स्रोत।

लक्ष्मण सिंह नेगी/ऊखीमठ। ओंकारेश्वर मन्दिर- मंगोलचारी पैदल मार्ग पर प्रेमनगर तोक में मदमहेश्वर धारे ( प्राकृतिक जल स्रोत ) के नाम से विख्यात जल स्रोत पर विगत तीन – चार वर्षों से बरसात के समय पानी विलुप्त होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं ।
कोई इसे धार्मिक परम्पराओं से छेड़खानी मान रहा है तो कोई इसे भूगर्भीय हल – चल । ग्रीष्मकाल में जल स्रोत का पानी कैसे प्रकट होता यह गंम्भीर व शोध का विषय बना हुआ है । स्थानीय आस्थावानों का कहना है कि बरसात के समय जहां हर प्राकृतिक जल स्रोत रिचार्ज हो जाता है वहीं मदमहेश्वर धारे का पानी अपने आप विलुप्त होना धार्मिक परम्पराओं के साथ खिलवाड होने के कारण जल स्रोत का पानी विलुप्त हो रहा है ।
इस समय पर भूवैज्ञानिकों ने जल स्रोत के भूगर्भीय सर्वेक्षण के बाद स्पष्ट कारण बताने की बात कही है । गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर पृथ्वी विज्ञान स्कूल भूगोल विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मोहन सिंह पंवार का कहना है कि हिमालय अभी युवा अवस्था मे होने के कारण धीरे – धीरे बढ रहा है तथा भारतीय प्लेट व यूरोपीय प्लेट के भूगर्भ के अन्दर आपस मे टकराने से निवर्तित गति बढने से हिमालयी भूभाग संवेदनशील बना हुआ है तथा भूगर्भ के अन्दर निवर्तित गति होने के कारण हिमालय क्षेत्र मे 2 से 3 तीव्रता वाली गतिविधिया हर रोज होती रहती है ।